सोमवार, 11 अगस्त 2014

छोटी सी बात

आसमान में बादल छाए होने के कारण उस समय काफी अँधेरा था। हालाँकि घड़ी में अभी साढ़े चार ही बजे थे, लेकिन इसके बावजूद लग रहा था जैसे शाम के सात बज रहे हों। लेकिन सलिल पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह अपने हाथ में गुलेल लिए सावधानीपूर्वक आगे की ओर बढ़ रहा था। उसे तलाश थी किसी मासूम जीव की, जिसे वह अपना निशाना बना सके। नन्हे जीवों पर अपनी गुलेल का निशाना लगाकर सलिल को बड़ा मजा आता। जब वह जीव गुलेल की चोट से बिलबिला उठता, तो सलिल की प्रसन्नता की कोई सीमा न रहती। वह खुशी के कारण नाच उठता।

अचानक सलिल को लगा कि उसके पीछे कोई चल रहा है। उसने धीरे से मुड़ कर देखा। देखते ही उसके पैरों के नीचे की जमीन निकल गई और वह एकदम से चिल्ला पड़ा। सलिल से लगभग बीस कदम पीछे दो चिंपैंजी चले आ रहे थे। सलिल का शरीर भय से काँप उठा। उसने चाहा कि वह वहाँ से भागे। लेकिन पैरों ने उसका साथ छोड़ दिया। देखते ही देखते दोनों चिंपैंजी उसके पास आ गए। उन्होंने सलिल को पकड़ा और वापस उसी रास्ते पर चल पड़े, जिधर से वे आए थे।

कुछ ही पलों में सलिल ने अपने आप को एक बड़े से चबूतरे के सामने पाया। चबूतरे पर जंगल का राजा सिंह विराजमान था और उसके सामने जंगल के तमाम जानवर लाइन से बैठे हुए थे। सलिल को जमीन पर पटकते हुए एक चिंपैंजी ने राजा को संबोधित कर कहा, 'स्वामी, यही है वह दुष्ट बालक, जो जीवों को अपनी गुलेल से सताता है।'

शेर ने सलिल को घूर कर देखा, 'क्यों मानव पुत्र, तुम ऐसा क्यों करते हो?'

सलिल ने बोलना चाहा, लेकिन उसकी जबान से कोई शब्द न फूटा। वह मन ही मन बड़बड़ाने लगा, 'क्योंकि मैं जानवरों से श्रेष्ठ हूँ।'

'देखा आपने स्वामी?' इस बार बोलने वाला चीता था, 'कितना घमंड है इसे अपने मनुष्य होने का। आप कहें तो मैं अभी इसका सारा घमंड निकाल दूँ?' कहते हुए चीता अपने दाहिने पंजे से जमीन खरोंचने लगा।

सलिल हैरान कि भला इन लोगों को मेरे मन की बात कैसे पता चल गई? लेकिन चीते की बात सुनकर वह भी कहाँ चुप रहने वाला था। वह पूरी ताकत लगाकर बोल ही पड़ा, 'हाँ, मनुष्य तुम सब जीवों से श्रेष्ठ है, महान है। और ये प्रकृति का नियम है कि बड़े लोग हमेशा छोटों को अपनी मर्जी से चलाते हैं।'

तभी आस्ट्रेलियन पक्षी नायजी स्क्रब, जिसकी शक्ल कोयल से मिलती-जुलती है, उड़ता हुआ वहाँ आया और सलिल को डपट कर बोला, 'बहुत नाज है तुम्हें अपनी आवाज पर, क्योंकि अन्य जीव तुम्हारी तरह बोल नहीं सकते। पर इतना जान लो कि सारे संसार में मेरी आवाज का कोई मुकाबला नहीं। दुनिया की किसी भी आवाज की नकल कर सकती हूँ मैं। ...क्या तुम ऐसा कर सकते हो?' सलिल की गर्दन शर्म से झुक गई और नायजी स्क्रब अपने स्थान पर जा बैठी।

सलिल के बगल में स्थित पेड़ की डाल से अपने जाल के सहारे उतरकर एक मकड़ी सलिल के सामने आ गई और फिर उस पर से सलिल की शर्ट पर छलाँग लगाती हुई बोली, 'देखने में छोटी जरूर हूँ, पर अपनी लंबाई से 120 गुना लंबी छलाँग लगा सकती हूँ। क्या तुम मेरा मुकाबला कर सकते हो? कभी नहीं। तुम्हारे अंदर यह क्षमता ही नहीं। पर घमंड जरूर है 120 गुना क्यों?' कहते हुए उसने दूसरी ओर छलाँग मार दी।

तभी गुटरगूँ करता हुआ एक कबूतर सलिल के कंधे पर आ बैठा और अपनी गर्दन को हिलाता हुआ बोला, 'मेरी याददाश्त से तुम लोहा नहीं ले सकते। दुनिया के किसी भी कोने में मुझे ले जाकर छोड़ दो, मैं वापस अपने स्थान पर आ जाता हूँ।'

सलिल सोच में पड़ गया और सर नीचा करके जमीन पर अपना पैर रगड़ने लगा।

'मैं हूँ गरनार्ड मछली। जल, थल, नभ तीनों जगह पर मेरा राज है।' ये स्वर थे पेड़ पर बैठी एक मछली के, 'पानी में तैरती हूँ, आसमान में उड़ती हूँ और जमीन पर चलती हूँ। अच्छा, मुझसे मुकाबला करोगे?'

ठीक उसी क्षण सलिल के कपड़ों से निकल कर एक खटमल सामने आ गया और धीमे स्वर में बोला, 'सहनशक्ति में मनुष्य मुझसे बहुत पीछे है। यदि एक साल भी मुझे भोजन न मिले, तो हवा पीकर जीवित रह सकता हूँ। तुम्हारी तरह नहीं कि एक वक्‍त का खाना न मिले, तो आसमान सिर पर उठा लो।'

खटमल के चुप होते ही एल्सेशियन नस्ल का कुत्ता सामने आ पहुँचा। वह भौंकते हुए बोला, 'स्वामीभक्ति में मनुष्य मुझसे बहुत पीछे है। पर इतना और जान लो कि मेरी घ्राण शक्ति (सूँघने की क्षमता) भी तुमसे दस लाख गुना बेहतर है।'

पत्ता खटकने की आवाज सुनकर सलिल चौंका और उसने पलटकर पीछे देखा। वहाँ पर बार्न आउल प्रजाति का एक उल्लू बैठा हुआ था। वह घूर कर बोला, 'इस तरह मत देखो घमंडी लड़के, मेरी नजर तुमसे सौ गुना तेज होती है समझे?'

सलिल अब तक जिन्हें हेय और तुच्छ समझ रहा था, आज उन्हीं के आगे अपमानित हो रहा था। अन्य जीवों की खूबियों के आगे वह स्वयं को तुच्छ अनुभव करने लगा था। इससे पहले कि वह कुछ कहता या करता, दौड़ता हुआ एक गिरगिट वहाँ आ पहुँचा और अपनी गर्दन उठाते हुए बोला, 'रंग बदलने की मेरी विशेषता तो तुमने पढ़ी होगी, पर इतना और जान लो कि मैं अपनी आँखों से एक ही समय में अलग-अलग दिशाओं में एक साथ देख सकता हूँ। मगर तुम ऐसा नहीं कर सकते। कभी नहीं कर सकते।'

दोनों चिंपैंजियों के बीच खड़ा सलिल चुपचाप सब कुछ सुनता रहा। भला वह जवाब देता भी तो क्या? उसमें कोई ऐसी खूबी थी भी तो नहीं, जि‍से वह बयान करता। वह तो सिर्फ दूसरों को सताने में ही अभी तक आगे रहा था।

तभी चीते की आवाज सुनकर सलिल चौंका। वह कह रहा था, 'खबरदार, भागने की कोशिश मत करना। क्योंकि 112 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार है मेरी। और तुम मुझ से पार पाने के बारे में सपने में भी न सोच सकोगे। क्योंकि तुम्हारी यह औकात ही नहीं है।'

'क्यों नहीं है औकात?' चीते की बात सुनकर सलिल अपना आपा खो बैठा और जोर से बोला, 'मैं तुम सबसे श्रेष्ठ हूँ, क्योंकि मेरे पास अक्ल है। और वह तुममें से किसी के भी पास नहीं है।'

सलिल की बात सुनकर सामने के पेड़ की डाल से लटक रहा चमगादड़ बड़बड़ाया, 'बड़ा घमंड है तुझे अपनी अक्ल पर नकलची मनुष्य। तूने हमेशा हम जीवों की विशेषताओं की नकल करने की कोशिश की है। जब तुम्हें मालूम हुआ कि मैं एक विशेष की प्रकार की अल्ट्रा साउंड तरंगें छोड़ता हूँ, जो सामने पड़ने वाली किसी भी चीज से टकरा कर वापस मेरे पास लौट आती हैं, जिससे मुझे दिशा का ज्ञान होता है, तो मेरी इस विशेषता का चुराकर तुमने रडार बना लिया और अपने आप को बड़ा बु‍द्धिमान कहने लगे?'

'बहुत तेज है अक्ल तुम्हारी?' इस बार मकड़ी गुर्राई, 'ऐसी बात है तो फिर मेरे जाल जितना महीन व मजबूत तार बनाकर दिखाओ। नहीं बना सकते तुम इतना महीन और मजबूत तार। इस्पात के द्वारा बनाया गया इतना ही महीन तार मेरे जाल से कहीं कमजोर होगा। ...और तुम्हारे सामान्य ज्ञान में वृद्धि के लिए एक बात और बता दूँ कि‍ यदि मेरा एक पौंड वजन का जाल लिया जाए, तो उसे पूरी पृथ्वी के चारों ओर सात बार लपेटा जा सकता है।'

इतने में एक भँवरा भी वहाँ आ पहुँचा और भनभनाते हुए बोला, 'वाह री तुम्हारी अक्ल? जो वायु गतिकी के नियम तुमने बनाए हैं, उनके अनुसार मेरा शरीर उड़ान भरने के लिए फिट नहीं है। लेकिन इसके बावजूद मैं बड़ी शान से उड़ता फिरता हूँ। अब भला सोचो कि कितनी महान है तुम्हारी अक्ल, जो मुझ नन्हें से जीव के उड़ने की परिभाषा भी न कर सकी।'

हँसता हुआ भंवरा पुनः अपनी डाल पर जा बैठा। एक पल के लिए वहाँ सन्नाटा छा गया। सन्नाटे को तोड़ते हुए शेर ने बात आगे बढ़ाई, 'अब तो तुम्हें पता हो गया होगा नादान मनुष्य कि तुम इन जीवों से कितने महान हो? अब जरा तुम अपनी घमंड की चिमनी से उतरने की कोशिश करो और हमेशा इस बात का ध्यान रखा कि सभी जीवों में कुछ न कुछ मौलिक विशेषताएँ पाई जाती हैं। सभी जीव आपस में बराबर होते हैं। न कोई किसी से छोटा होता है न कोई किसी से बड़ा। समझे?'

'लेकिन इसके बाद भी यदि तुम्हारा स्वभाव नहीं बदला और तुम जीव-जंतुओं को सताते रहे, तो तुम्हें इसकी कठोर से कठोर सजा मिलेगी।' कहते हुए हाथी ने सलिल को अपनी सूँड़ में लपेटा और जोर से ऊपर की ओर उछाल दिया।

सलिल ने डरकर अपनी आँखें बंद कर लीं। लेकिन जब उसने दोबारा अपनी आँखें खोलीं, तो न तो वह जंगल था और न ही वे जानवर। वह अपने बिस्तर पर लेटा हुआ...

'इसका मतलब है कि मैं सपना...' सलिल मन ही मन बड़बड़ाया। उसने अपनी पलकों को बंद कर लिया और करवट बदल ली। हाथी की कही हुई बातें अब भी उसके कानों में गूँज रही थीं।

                                                                       --ज़ाकिर अली ‘रजनीश’--

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