मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

एक लड़की पहेली सी

 पहली मुलाकात

टाइपिंग कोचिंग सेंटर में विजय का पहला दिन था। वह अपनी सीट पर बैठा टाइप सीखने के लिए नियमावली पुस्तिका पढ़ रहा था। तभी उसकी निगाह अपने केबिन के गेट की तरफ गई। गाय की आँख जैसी कजरारे नयनों वाली एक साँवली उसी केबिन में आ रही थी। वह देखता ही रह गया। लड़की उसकी बगल वाली सीट पर आ कर बैठ गई। टाइपराइटर को ठीक किया और टाइप करने में मशगूल हो गई। लेकिन विजय का मन टाइप करने में नहीं लगा। वह किसी भी हालत में लड़की से बातें करना चाह रहा था। वह टाइपराइटर पर कागज लगाकर बैठ गया और लड़की को निहारने लगा। लड़की की अँगुलियाँ टाइपराइटर के की-बोर्ड पर ऐसे पड़ रही थीं जैसे वह हारमोनियम बजा रही हो। थोड़ी देर बाद लड़की को विजय की इस हरकत का एहसास हुआ तो वह गुस्से में बोली।

क्या देख रहे हो?

आपको टाइप करते हुए देख रहा हूँ।

यहाँ क्या करने आए हो? उसका स्वर तल्ख था।

टाइप सीखने। बिल्कुल सहज जवाब था विजय का।

ऐसे सीखोगे? लड़की के स्वर में तल्खी बरकरार थी।

मेरा आज पहला दिन है न, इसलिए मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है। आप टाइप कर रही थीं तो मैं देखने लगा कि आपकी अँगुलियाँ कैसे पड़ती हैं की-बोर्ड पर।

कैसे पड़ती हैं?

लगता है जैसे आप हारमोनियम बजा रही हों। आपको टाइप करते देखकर लगा कि मैं भी सीख जाऊँगा।

यदि इसी तरह मुझे ही देखते रहे तो आपकी यह मनोकामना कभी पूरी नहीं होगी।

लड़की फिर टाइप करने में जुट गई। विजय भी की-बोर्ड देखकर टाइप करने लगा। टाइप करने में उसका मन नहीं लग रहा था। वह बेचैनी महसूस कर रहा था। उसका मन लड़की को निहारने को ही कह रहा था। वह चोर निगाहों से उसे देख भी लेता। दस मिनट बाद ही उसने टाइपराइटर का रिबन फँसा दिया। वह उसे ठीक करने लगा पर ठीक नहीं कर पाया। हार कर बैठ गया।

क्या हुआ?

रिबन फँस गया।

रिबन तो फँसेगा ही जब ध्यान कहीं और हाथ कहीं और होगा तो।

मैं तो टाइप ही कर रहा था।

लड़की उसके टाइपराइटर को थोड़ा अपनी ओर खींचकर रिबन ठीक करने लगी। इसी बीच रिबन नीचे गिर गया। वह उसे उठाने के लिए झुकी तो उसके गले से चुन्नी गिर गई। रिबन उठाने के लिए विजय भी झुका था। उसकी निगाह अकस्मात ही लड़की के उरोजों पर चली गई। लड़की ने भी विजय की इस हरकत को देखा और उठकर फिर से रिबन ठीक करने लगी। विजय के चेहरे पर पसीना चुहचुहा आया।

लो, ठीक हो गया। लड़की ने कहा तो उसकी चेतना लौटी।

लड़की फिर टाइप करने में लग गई। लेकिन विजय का मन टाइप में बिल्कुल भी नहीं लगा। वह लड़की से बात करने की ताक में ही लगा रहा।

मन नहीं लग रहा है? अचानक लड़की ने उससे पूछा तो उसकी बाँछें खिल गईं। उसने सोचा कि आप जैसी खूबसूरत लड़की बगल में बैठी हो तो टाइप करने में किसका मन लगेगा, लेकिन वह सोचकर ही रह गया।

नहीं और लगता है कि सीख भी नहीं पाऊँगा।

आसार तो कुछ ऐसे ही दिखते हैं।

आपका नाम?

सरिता।

अच्छा नाम है।

लेकिन मुझे इस नाम से नफरत है।

क्यों?

कोई एक कारण हो तो बताएँ। यह कहते हुए सरिता अपनी सीट से उठी और पर्स कंधे पर टाँगते हुए केबिन से बाहर निकल गई। विजय उसे जाते हुए देखता रहा।

सरिता के जाने के बाद उसने एक निगाह उसके टाइपराइटर पर डाली। टाइपराइटर उसे उदास लगा। विजय को लगा कि उसकी उदासी उस पर भी तारी होती जा रही है।

और दुनिया बदल गई

इसी दिन से विजय हवा में उड़ने लगा। रातों को छत पर घूमने लगा। तारे गिनता और आसमान से बातें करता। चाँदनी रात अच्छी लगने लगी और उसमें बैठकर कविताएँ लिखता। गर्मी की धूप उसे गुनगनी लगने लगी। दुनिया गुलाबी हो गई तो जिंदगी गुलाब का फूल। आँखों से नींद गायब हो गई। वह ख्यालों ही ख्यालों में पैदल ही कई कई किलोमीटर घूम आता। अपनी इस स्थिति के बारे में उसने अपने एक दोस्त को बताया तो उसने कहा गुरु, तुम्हें प्यार हो गया है। दोस्त की बात सुनकर उसे लगा कि दोस्त ने उसके दिल की बात कह दी। उसे अच्छा लगा। वह दोस्त को देखकर मुस्कराने लगा और बड़ी देर तक मुस्कराता रहा।

अगले दिन विजय ने सरिता से कहा कि आप पर एक कविता लिखी है। चाहता हूँ कि आप इसे पढ़ें।

यह भी खूब रही। जान न पहचान। तू मेरा मेहमान। कितना जानते हैं आप मुझे?

जो भी जानता हूँ उसी के आधार पर लिखा हूँ।

सरिता उसकी लिखी कविता पढ़ने लगी।

सरिता

कलकल करके बहने वाली जलधारा

लोगों की प्यास बुझाती है

किसानों के खेतों को सींचती है

राह में आती हैं बहुत बाधाएँ

फिर भी मिलती है सागर से

उसके प्रेम में सागर

साहिल पर पटकता है सिर

उनके प्रेम की प्रगाढ़ता का प्रमाण है

पूर्णमासी की रात में

उठने वाला ज्वार-भाटा

सरिता है तो सागर है

सरिता के बिना रेगिस्तान हो जाएगा सागर

सागर के प्रेम में

सरिता लाँघती है पहाड़, पठार

और मानव निर्मित बाधाओं को

कविता के नीचे उसने विजय की जगह सागर लिखा था। सरिता ने उसे देखा और मुस्कराते हुए कागज विजय की तरफ बढ़ा दिया। विजय ने उसके चेहरे को देखते हुए कहा कि मैं चाहता हूँ कि आप इसे टाइप कर दें। इसे छपने के लिए भेजना है। सरिता कुछ नहीं बोली। कागज को सामने रखकर टाइप करने लगी। विजय उसे देखता रहा। इस बात का आभास सरिता को भी था कि विजय उसे ही देख रहा है, लेकिन उसने कोई विरोध करने के बजाय पूछा कि आप कवि हैं?

बनने की कोशिश कर रहा हूँ।

कवि भगोड़े होते हैं। सरिता ने उसकी ओर देखते हुए कहा। उसकी इस टिप्पणी से विजय सकपका गया।

मैं समझा नहीं।

कवि अपने सुख के लिए कविता का सृजन करता है। रचते समय वह कविता के बारे में सोचता है। उसके बाद वह कविता को उसके हाल पर छोड़ देता है। कविता जब संकट में होती है तो कवि कविता के पक्ष में खड़ा नहीं होता है। वह भाग खड़ा होता है दूसरी कविता की रचना करने के लिए।

यह आप कैसे कह सकती हैं?

मैं समझती हूँ कि आदमी की जिंदगी भी एक कविता है। मेरी जिंदगी एक कविता है। मेरी जिंदगी मुझे अच्छी नहीं लगती। इसलिए कविता भी मुझे अच्छी नहीं लगती।

विजय अवाक। सरिता चुप हुई तो उसने कहा अरे वाह, आप तो कवि हैं। अभी आपने जो कहा वह तो कविता है।

कविता नहीं, कविता का प्रलाप है, उसकी वेदना है।

कवि वेदना ही तो व्यक्त करता है।

लेकिन यह कविता की वेदना है। जो उस कवि के कारण उपजी है, जिसने मेरी जिंदगी की रचना की। इतना कह कर सरिता केबिन से बाहर चली गई। कैसी है यह?

विजय ने सरिता के टाइपराइटर को देखा। कुछ देर पहले जहाँ से उसे संगीत की सरिता बह रही थी, अब वहाँ मुर्दानी शांति पसर गई थी। लगा जैसे टाइपराइटर किसी शोक गीत की रचना में मशगूल है।

प्यार की खुशबू

आज उन्होंने बातें अधिक कीं। उनके वार्तालाप को देखकर टाइपिंग इंस्टीट्यूट चलाने वाली मैडम ने उनके पास आकर कहा आजकल तो तुम काफी खुश हो सरिता। बदले में सरिता केवल मुस्कराई। विजय भी मुस्कराया। तो क्या मेरे प्यार की गंध इसे भी लग गई। प्यार होता ही ऐसा है। जब महकता है तो सारी सीमाएँ तोड़कर पूरे परिवेश में अपनी खुशबू बिखेर देता है। विजय ने सोचा।

अगले दिन सरिता जब टाइपिंग इंस्टीट्यूट आई तो काफी सजी धजी थी। नया गुलाबी सूट पहने थी। बालों की स्टाइल भी बदली हुई थी। विजय को सरिता का यह बदला रूप बेहद प्यारा लगा। वह अपनी भावनाओं को दबा नहीं पाया। बोला, काफी सुंदर लग रही हो। जवाब में जब सरिता ने मुस्कराते हुए थैंक्यू का फूल उसकी तरफ फेंका तो उसकी इच्छा हुई कि वह खड़ा होकर नाचने लगे और जोर जोर से चिल्लाए कि उसे प्यार हो गया है। अपनी इस इच्छा पर उसने बड़ी ही मुश्किल से काबू पाया।

ग्रह नक्षत्रों की चाल

आदमी जब निराश होता है या फिर लक्ष्य के प्रति उसकी स्थितियाँ साफ नहीं होती हैं तो वह धर्म और ज्योतिषी की शरण में चला जाता है। विजय की भी हालत कुछ ऐसी ही थी। वह सरिता को चाहने लगा था, लेकिन सरिता भी उसे चाहती है यह स्पष्ट नहीं था। वह अपनी बेरोजगारी से भी परेशान था। घर वाले शादी के लिए अलग से दबाव डाल रहे थे। लिहाजा एक दिन विजय ज्योतिषी के पास चला गया। नौकरी पाने के लिए वह ज्योतिषी से नुस्खे पूछता रहता है। उसने सोचा कि प्रेम पाने के लिए भी ग्रह नक्षत्रों की चाल जान ली जाए। नौकरी के लिए तो ज्योतिषी कभी कहता है कि आपकी कुंडली में काल सर्प दोष है, जो आपके शुभ कार्यों में बाधक है। इसकी शांति के लिए घर में मोर पंख रखें और प्रतिदिन उन्हें दो तीन बार अपने शरीर पर घुमाएँ। सोमवार के दिन चाँदी से बना सर्प का जोड़ा शिवलिंग पर चढ़ाएँ। नित्य श्री गणेश जी की उपासना करें। धैर्य पूर्वक ऐसा करने पर ही रोजगार प्राप्ति की संभावना बनेगी।

विजय ने अभी तक उसके बताए हर नुस्खे को आजमाया, लेकिन आज तक कोई संभावना नहीं बनी। शिकायत करने पर वह कह देता है कि आप पर भाग्येश शुक्र की महादशा चल रही है। शुक्र के बलवर्द्धन के लिए शुक्रवार के दिन साढ़े पाँच रत्ती का ओपल चाँदी में जड़वाकर दाहिनी मध्यमा में धारण करें।

पंडित जी मेरी कुंडली में प्रेम है कि नहीं?

है न, बहुत है। कुंडली पर सरसरी नजर डालते हुए ज्योतिषी ने कहा।

प्रेम विवाह का योग है या अरेंज्ड?

दोनों का, लेकिन दोनों में छोटी छोटी बाधाएँ हैं।

प्रेम विवाह में क्या लफड़ा है?

आप पर शुक्र की महादशा चल रही है, जो अशुभ फलप्रद है। गोचर में भी आपकी राशि पर शनि की साढ़े साती चल रही है। शनि शांति के लिए प्रत्येक शनिवार कुत्ते को सरसों के तेल से बना मीठा पराठा खिलाएं। ग्रह शांति के उपरांत ही प्रेम में सफलता की संभावना बन सकती है।

सब ढकोसला है। इतने दिनों से आप एक अदद नौकरी के लिए मुझसे क्या क्या नहीं करवाते रहे। मिली नौकरी? साला चपरासी भी कोई रखने को तैयार नहीं है।

भन्नाया हुआ विजय ज्योतिषी के कमरे से निकल गया। घर पहुँचते ही मम्मी कहने लगीं तुम्हारे पिता ने लड़की पसंद कर ली है। उनके दोस्त की बेटी है। बीए करके नौकरी कर रही है।

तो मैं क्या करूँ?

शादी कर लो।

बिना नौकरी मिले यह नहीं हो पाएगा।

फिर तो पूरी जिंदगी कुँआरे ही रह जाओगे।

बीवी की कमाई खाने से तो कुँआरा रहना ही अच्छा है। कहते हुए विजय अपने कमरे में चला गया।

जिदंगी आसान नहीं

एक सप्ताह तक सरिता टाइपिंग स्कूल नहीं आई। विजय रोज आता रहा और निराश होकर घर वापस जाता रहा। आठवें दिन सरिता के आते ही वह पूछ बैठा कि एक सप्ताह आई नहीं?

जिंदगी में बहुत दिक्कतें हैं। कहते हुए सरिता अपनी सीट पर बैठ गई।

क्या हो गया?

मेरी बहन जो बीए कर रही है घर से किसी लड़के के साथ चली गई। दोनों बिना शादी के ही एक साथ रह रहे हैं।

ऐसा क्यों किया?

उसका कहना है कि यदि वह ऐसा न करती तो उसकी शादी ही नहीं हो पाती।

मतलब?

हमारे घर के आर्थिक हालात। इतना कहकर सरिता चुप हो गई।

मुझे नहीं लगता कि आपकी बहन ने गलत किया है। आज की युवा पीढ़ी विद्रोही हो गई है। वह परंपराओं को तोड़कर नई नैतिकता गढ़ रही है। समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।

पर माँ तो नहीं समझतीं।

हाँ, उनके लिए समझना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन आजकल सब चलता है। हमारा समाज बदल रहा है। बिना शादी के एक साथ रहना पश्चिमी परंपरा है, लेकिन अब ऐसा हमारे यहाँ भी होने लगा है।

हाँ, बैठकर सपनों के राजकुमार का इंतजार करने से तो बेहतर ही है न कि जो हाथ थाम ले उसके साथ चल दिया जाए। चाहे चार दिन ही सही, जिंदगी में बहार तो आ जाएगी।

विजय को लगा कि वह कह दे कि फिर तुम मेरे साथ क्यों नहीं चली चलती। हम शादी कर लेते हैं पर वह कह नहीं पाया।

जानते हो मेरी एक बहन 12वीं में पढ़ रही है। उसका भी एक लड़के से प्रेम चल रहा है। वे दोनों एक दूसरे से शादी करने को तैयार हैं। अगले साल बालिग होते ही शादी कर लेंगे। सरिता ने कहा।

विजय के मन में आया कि कह दे कि अच्छा ही है। वह अपने आप वर खोज लें तो तुम्हें परेशानी नहीं होगी। वैसे भी तीन हजार रुपये प्रति माह की नौकरी में तुम कौन सा राजकुमार उन्हें दे दोगी। अच्छा है कि वह अपने अपने प्रेमियों के साथ भाग जाएँ।

बातों बातों में एक दिन सरिता ने उसे बताया था कि उसके पिता की मौत हो चुकी है और वह तीन बहन है। उसका कोई भाई नहीं है। बहनों में वही सबसे बड़ी है। वह एक आफिस में काम करती है और उसे तीन हजार रुपये मासिक वेतन मिलते हैं। दूसरी जगह काम पाने के लिए टाइपिंग सीख रही है।

विजय को अपने एक दोस्त के साथ घटी ऐसी ही घटना की याद आ गई। उसके दोस्त की एक बहन अपनी बड़ी बहन के अधेड़ से ब्याह देने के बाद अपने प्रेमी के साथ भाग गई। इसके बाद उसका दोस्त गुस्से में उबल रहा था। कह रहा था कि दोनों को काट डालूँगा। तब विजय ने कहा था कि शांत रहो यार। वे दोनों जहाँ हों कुशल से रहें। उसने जो किया अच्छा ही किया। तुम कौन सा उसे राजकुमार से ब्याह देते। किसी अधेड़ के पल्ले बाँधते, इससे तो अच्छा ही है कि वह अपने पसंद के लड़के के साथ जीवन गुजारे। आखिकार जिंदगी उसकी है। जीना उसे है इसलिए निर्णय भी उसे ही लेना चाहिए। तुझे तो उसके निर्णय का स्वागत करना चाहिए। दोस्त के बड़े भाई ने भी विजय की बात का समर्थन किया था। लेकिन थोड़ा दार्शनिक अंदाज में कहा था कि होनी को यही मंजूर था। उसकी कुंडली में भी यही लिखा है।

मैं भी सोचती हूँ कि एक बहन ने जो किया ठीक ही है। दूसरी जो करेगी वह भी अच्छा ही है। जीवन यदि संघर्ष है तो संघर्ष करो। प्रेमी से पति बना व्यक्ति भी धोखा दे सकता है। जीवन नरक बना सकता है और माता पिता का खोजा राजकुमार भी यही करता है। लेकिन माँ नहीं मानतीं। सोचती बहुत हैं और तबीयत खराब कर लेती हैं।

पुराने जमाने की हैं न।

हद तो यह हो गई कि वह मुझसे कहने लगी हैं कि तू भी किसी के साथ भाग जा। मैं उन्हें इस हाल में छोड़कर किसके साथ... रो पड़ी सरिता। उस केबिन में तीन चार लड़के और टाइप सीख रहे थे। वह पहले ही उनकी बातों से तंग थे।

सरिता के रोने से वह भौंचक्क रह गए और उसकी तरफ देखने लगे। विजय की समझ में नहीं आया कि क्या कहे और क्या करे। स्थिति को सरिता समझ गई तो खुद पर काबू किया और फिर से टाइप करने लगी। उसके बाद सभी टाइप करने लगे। केबिन में टाइपराइटर के की-बोर्ड की आवाज गूँजने लगी। इसके दस मिनट बाद सरिता उठी और बिना बोले ही चली गई। विजय की इच्छा हुई कि वह उसके पीछे पीछे चला जाए, लेकिन वह बैठा रहा और उसे जाते देखता रहा। उसके जाने के बाद उसका मन टाइप करने में नहीं लगा और दस मिनट बाद ही वह भी चला गया।

मूसलाधार बारिश में बिजली का का गिरना

आसमान में काले बादल घिर आए थे। इस कारण परिवेश में अँधेरा पसर गया था। रह रह कर आसमान में बिजली चमकती और बादल गरजते। ऐसे मौसम में भी विजय टाइपिंग स्कूल जाने के लिए तैयार था। वह सरिता से मिलना चाहता था। एक बार तो उसे लगा कि ऐसे मौसम में सरिता नहीं आएगी। लेकिन फिर उसे लगा कि नहीं, सरिता जरूर आएगी। यदि मैं मौसम से डर कर नहीं गया तो वह क्या सोचेगी। कहेगी कि जरा सा मौसम क्या खराब हुआ साहब डर गए। यही है प्यार। उसने तय किया कि वह जरूर जाएगा।

जब वह घर से बाहर निकला तो बूँदाबाँदी शुरू हो चुकी थी। फिर भी वह तेज कदमों से टाइपिंग स्कूल की तरफ बढ़ने लगा। कुछ ही दूर गया होगा कि बारिश तेज हो गई। सड़क पर चल रहे लोग भाग कर किसी छाँव में खड़े हो गए पर वह अपनी मस्ती में भीगता हुआ चलता रहा। उसे भीगने में मजा आ रहा था...। वह आनंदित था कि वह सरिता से मिलने के लिए जा रहा है।

टाइप स्कूल पहुँचा तो मैडम उसे देखकर मुस्कराई। वह भी मुस्कराया। उसने इधर उधर नजर दौड़ाई कहीं कोई नहीं था। सरिता नहीं आई। उसने अपने आप से सवाल किया।

इतनी बारिश में आने की क्या जरूरत थी? मैडम ने विजय से कहा।

आप नहीं समझेंगी।

सब समझती हूँ, लेकिन अब सरिता यहाँ कभी नहीं आएगी।

क्यों? आपको कैसे पता? अचानक मिली इस सूचना से वह अनियंत्रित सा हो गया।

उसका फोन आया था। उसने कहा कि यदि आप आओ तो बता दूँ।

वह कभी नहीं आएगी? विजय की आवाज किसी कुएँ में से आती लगी। उसकी हालत उस दीपक के समान हो गई थी जिसका तेल खत्म हो गया हो और लौ बुझने वाली हो...।

वह पैर घसीटता टाइपिंग स्कूल से बाहर आया। बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी। जैसे ही उसने जीने से नीचे कदम रखा जोर से बिजली चमकी और बादल गरजने लगे...। लगा कहीं बिजली गिर गई...। विजय संज्ञाशून्य सा भीगता हुआ घर की तरफ चल पड़ा।

वह सरिता के घर जाएगा। यह खयाल आते ही उसे याद आया कि वह तो सरिता के घर का पता ही नहीं जानता। वह फिर टाइपिंग स्कूल की तरफ भागा। वहाँ पहुँचा तो दरवाजे पर ताला लगा था। वह गिरते गिरते बचा। उसके कदम उठ नहीं रहे थे। उसे ठंड लगने लगी थी। उसे लगा कि वह बीमार हो गया है।

भीगते हुए घर पहुँचा। तब तक उसका शरीर बुखार में तपने लगा। लगभग पंद्रह दिन वह चारपाई पर पड़ा रहा। जब कुछ ठीक हुआ तो लगा की उसके शरीर में जान ही नहीं है। बीसवें दिन वह टाइपिंग स्कूल गया। मैडम नहीं मिली। यह सिलसिला 15 दिन तक चलता रहा। 16वें दिन उसे मैडम मिली। उसे देखते ही बोल पड़ीं कि काफी कमजोर हो गए हो?

उस दिन बारिश में भीगा तो बीमार हो गया।

विजय ने मैडम से सरिता के घर का पता माँगा तो उसने एक कागज पर सरिता का पता लिखा और विजय को थमा दिया। विजय उसे पढ़ता रहा। फिर मैडम को धन्यवाद बोलकर चल पड़ा। उसने तय किया कि वह आज ही सरिता से मिलेगा।

जब वह मैडम के बताए पते पर पहुँचा तो उस मकान में ताला लगा हुआ था। पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि सरिता यहीं रहती थी, लेकिन अब मकान बेचकर चली गई है। कई लोगों से पूछने के बाद भी विजय को उसका नया पता नहीं मिला। निराश होकर वह घर लौट आया। सरिता के इस व्यवहार से उसे काफी धक्का लगा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि सरिता ने ऐसा क्यों किया?

वह सरिता की याद में कविताएँ लिखने लगा। एक दिन उसने एक सपना देखा और उसके भावों को कविता के रूप में कागज पर लिखा...।

सरिता, जो निकली

अपने उद्गम स्थल से

कलकल करते हुए

सागर की चाह में चली

द्रुतगति से

सामने आ गया पहाड़

टकराने के बाद बदल दिया

अपना मार्ग।

यह तो शुरुआत थी

मार्ग था लंबा

पहाड़ों की श्रृंखला थी

पठार और पथरीली जमीन भी

आदमी भी खड़ा था

फावड़ा लिए

बाँध बनाने को तत्पर

खेत सींचने के लिए

चाहिए उसे पानी

पीने के लिए भी

बिजली भी तो चाहिए

घर रोशन करने के लिए

कारखाने चलाने के लिए

कारखानों के कचरे को बहाने

के लिए भी चाहिए उसे नदी।

प्रकृति से लड़ते नहीं थकी वह

बहती रही अविरल

दिल में सागर से मिलने

की चाह लिए।

भारी पड़ा प्यार

अवरोधों पर

पहुँच गई वह साहिल पर

लेकिन मानव ने बना बाँध

रोक दी उसकी धारा

कारखानों की गंदगी उड़ेल

सड़ा दिया उसकी आत्मा को।

अपने आँसुओं से

धोती रही वह अपना बदन

निर्मलता से मिलना चाहती थी सागर से

विकास उन्मादी मानव ने

रौंद दिया उसकी आत्मा को

जिंदा लाश हो गई वह।

उसके लिए तड़पता है सागर

साहिल पर पटकता है अपने सिर को

उसने तो दम तोड़ दिया

मानव के विकास में

सागर भेजता है बादलों को

उसे पुनर्जीवित करने के लिए

वह जानता है बेवफा नहीं है वह

सच्चा है उसका प्यार

कैद है वह मानव के विकास में

बरसते हैं बादल

उफनती है नदी

मानव को दिखाती है अपना विकराल रूप

मिलते ही प्यार की ताकत

तबाह कर देना चाहती है वह

मानव सृष्टि को

बदला लेना उसकी प्रकृति नहीं

भागती है तेज गति से

सागर की ओर

बाँहें फैलाए स्वागत करता है सागर

बताना चाहती है अपने कष्टों को वह

लेकिन कुछ भी नहीं जानना चाहता सागर

जानता है वह मानव स्वभाव को

उसका भी तो पाला पड़ा है

इस स्वार्थी प्राणी से...।

विजय की इस कविता को पत्रिका में छपे एक माह से अधिक हो गया है, लेकिन उसके पास इस बार भी अब तक सरिता का कोई पत्र या फोन नहीं आया है। उसे उम्मीद है कि एक न एक दिन सरिता उससे संपर्क जरूर करेगी। जब से यह कविता प्रकाशित हुई है तब से वह फोन की प्रत्येक घंटी पर चौंक जाता है। यही नहीं हर रोज पोस्टमैन का बेसब्री से इंतजार करता है और जब उसके आने का समय खत्म हो जाता है तो वह उदासी के गहरे समुद्र में डूब जाता है...।
                                                                     ---ओमप्रकाश तिवारी---

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